श्री मात्रे A seeking soul | Tutor & Researcher of Ancient Sānātān Dhārmā, Itihas, Vedāng, Tāntrā-Jyøtïsh Unsolved Vāidik Mysteries |नमश्चण्डिकायै【࿗】ब्राह्मण 🚩
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May 6 • 7 tweets • 4 min read
मांगलिक दोष #Thread (1/6)
▪️मांगलिक दोष क्या है? 🧵
▪️मांगलिक दोष तथा विवाह का संबंध
▪️मंगल दोष से मुक्ति के उपाय
कुंडली में मंगल की स्थिति के कारण मांगलिक दोष होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब किसी व्यक्ति की कुंडली में मंगल 1, 4, 7, 8 तथा 12 वें भाव में होता है तो माना जाता है कि व्यक्ति मांगलिक है।
▪️ मंगल (ग्रहों का सेनापति)
मंगल को शक्ति, साहस, पराक्रम और ऊर्जा का कारक माना जाता है। कुंडली में इसकी शुभ स्थिति किसी भी व्यक्ति के लिए शुभ साबित होती है। लेकिन अगर कुंडली में इसका स्थान पहले, चौथे, सातवें, आठवें और बारहवें भाव में हो तो इस स्थिति को मांगलिक दोष कहते हैं। यह दोष वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है और इसके कारण व्यक्ति के विवाह में अनेक रूप की बाधाएं भी आती हैं। (2/6)
May 5 • 9 tweets • 6 min read
#Thread 🧵 नवधा भक्ति 🌸
हिंदू धर्म में भक्ति को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। भक्त की भक्ति से भगवान भी दौड़े चले आते हैं। हमारे ग्रंथों में नौ प्रकार की भक्ति को अति महत्व दिया गया है जिन्हें "नवधा भक्ति" कहा जाता है। इसका सबसे पहला वर्णन विष्णु पुराण में आता है,
अर्थात: श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद सेवन, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्मनिवेदन ये नौ प्रकार की भक्ति कहलाती है।
श्रवण: भगवान की कथा और महत्त्व को पूरी श्रद्धा से सुनना।
श्रवण भगवान की लीलाओं का श्रवण है। श्रवण में भगवान के गुण, महिमा, लीलाओं तथा उनके दिव्य नाम और रूप से संबंधित कथाएँ सुनना शामिल है। भक्त दिव्य कथाओं को सुनने में लीन हो जाता है और उसका मन दिव्यता के विचारों में लीन हो जाता है, मन संसार के प्रति अपना आकर्षण खो देता है। भक्त स्वप्न में भी भगवान को याद करता है।
कीर्तन: भगवान के अनंत गुणों का अपने मुख से उच्चारण करते हुए कीर्तन करना।
कीर्तन भगवान की महिमा का गान है। भक्त दिव्य भावना से अभिभूत हो जाता है। वह भगवान के प्रेम में खो जाता है। भगवान के प्रति अत्यधिक प्रेम के कारण उसके शरीर में विरह की पीड़ा उत्पन्न होती है। भगवान की महिमा के बारे में सोचते हुए वह रुक-रुक कर रोता है। भक्त हमेशा भगवान के नाम का जाप करने में लगा रहता है और सभी को उनकी महिमा का वर्णन करता है। वह जहाँ भी जाता है, भगवान की स्तुति करने लगता है। वह सभी से कीर्तन में शामिल होने का अनुरोध करता है। वह आनंद में गाता और नाचता है। वह दूसरों को भी नचाता है। कलियुग में कीर्तन सर्वश्रेष्ठ योग है - 'कलौ केशवकीर्तनम्।' यह इस युग के लिए भक्ति की निर्धारित विधि है।
May 5 • 4 tweets • 2 min read
चार युगों के विषय में जानकारी
1. सत्युग - सत्युग की उत्पत्ति कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को दिन बुधवार के प्रथम प्रहर में श्रवण नक्षत्र के वृद्धि योग में हुई। इस के वर्ष 17,28,000 हैं। इस युग में भगवान श्री नारायण के चार अवतार हुए 1. मत्स्य, 2. कच्छप, 3. वराह और 4. नृसिंह अवतार। धर्म चार चरणों पर पूर्ण था।2. त्रेता युग - इस युग की उत्पत्ति वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को सोमवार के दिन दूसरे प्रहर में रोहिणी नक्षत्र एवं शोभन योग में हुई। इसके वर्ष 12,96,000 हैं। इस युग में अवतार तीन हुए 1. वामन, 2. परशुराम, 3. श्रीराम अवतार।
May 4 • 6 tweets • 3 min read
सुंदरकांड पाठ के सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते
हैं।
१. सुंदरकांड वाल्मिकी जी द्वारा रचित रामायण का एक महत्वपूर्ण भाग है, उनके उपरांत तुलसीदास जी ने पंचम सोपान में सुंदरकांड की रचना काव्य में की
२. जो भी जातक (भक्त) सुंदर कांड का पाठ करता है उसे न केवल हनुमान जी बल्कि भगवान राम का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। हनुमान चालीसा हो या सुंदरकांड दोनों का ही पाठ करने से व्यक्ति को जीवन में कई सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलते हैं। प्रतिदिन सुंदरकांड का पाठ करता है उसकी एकाग्रता में वृद्धि होती है और वह आत्मविश्वास से भर जाता है। जिस तरह अपनी शक्तियों को याद करके हनुमान जी ने बड़े-बड़े कार्यों का आसानी से पूरा कर दिया था
May 3 • 7 tweets • 13 min read
पितृश्राप ही पितृदोष है किंतु बताया जाएगा इसश्राप से मुक्ति आपके घर में कलह क्लेश,धन, स्वास्थ्य, संतान का उच्च भविष्य पर कैसे क्रिया करती है एवं इसे कैसे ठीक किया जा सकता है ….
क्या सब आत्माएँ पितृलोक पहुँचती है?
🧵 कृपया अंत तक पढ़े
गरूण पुराण विभिन्न प्राचीन ग्रंथों में दिवंगत आत्माओं के लिए 'पित्तर' शब्द प्रयुक्त किया गया है। यद्यपि यह 'पित्तर' शब्द मूलतः पिता के समानार्थक रूप में प्रयुक्त होता है, किंतु मुक्ति कर्म के अन्तर्गत इस 'पित्तर' शब्द का प्रयोग मृत्यु को प्राप्त हुए सभी सगोत्री संबन्धियों यथा माता-पिता, दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ ताई, नाना नानी, बडा या छोटा भ्राता-बहिन आदि के लिए प्रयुक्त होता है। क्योंकि इन सभी सगोत्री संबन्धियों का एक-दूसरे के साथ रक्त एंव शरीर का संबन्ध रह होता है। यद्यपि कुछ ग्रंथों में 'पित्तर' शब्द की जगह दिवंगत आत्मा के लिए 'पितृ' शब्द का प्रयोग भी हुआ है। यह शब्द भी 'पित्तर' का ही समानार्थक माना गया है।
शास्त्रों में सात लोकों का बहुत विस्तार से वर्णन हुआ है। यह सप्त लोक है- ब्रह्मलोक, सूर्यलोग, स्वर्गलोक, चन्द्रलोक, पितृलोक, मृत्युलोक और पाताललोक।
इनमें मृत्युलोक के साथ जीवित मनुष्यों अर्थात् समस्त प्राणियों का संबन्ध रहता है, जबकि मृतात्माओं का संबन्ध पितृलोक के साथ माना गया है। यह बात भी सत्य है कि सभी मृतात्माएं पितृलोक तक नहीं पहुंच पाती है। उस पितृलोक तक केवल शुभ कर्म करने वाली आत्माएं ही पहुँचती है। अन्य दिवंगत मृतात्माओं को अपने-अपने कर्मों के अनुसार मृत्युलोक में रहकर ही भूत, प्रेत, पिशाचादि जैसी निम्न स्तरीय योनियों में भटकना पडता है। रूद्र, वसु और आदित्य पितृलोक के देव माने गये है। इस पित्तरलोक में पहुँचकर कुछ शुभ कर्मों वाली आत्माएं भी देव तुल्य बन जाती है। इसलिए उन पित्तरों को 'पितृ देव' कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि भीष्म पितामह को पितृ देव के रूप में पितृलोक में विशिष्ट स्थान प्राप्त हुआ है।
May 1 • 8 tweets • 4 min read
स्वास्थ्यपर संगीतके स्वरों का चमत्कारी प्रभाव
गान्धर्ववेद (संगीतशास्त्र) में स्वर सात बतलाये गये हैं। इन्हीं सात स्वरोंके मिश्रणसे सभी राग-रागिनियोंका स्वरूप निर्धारित हुआ है। स्वर साधना एवं नादानुसंधानके है विविध प्रयोग निर्दिष्ट हैं। इनसे शरीर, स्वास्थ्यको भी बल मिलता है। जानिए कैसे
इन सात स्वरोंके नाम हैं-सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सा - (षड्ज) - नासिका, कण्ठ, उर, तालु, जिह्वा और दाँत इन छः स्थानोंके सहयोगसे उत्पन्न होनेके कारण इसे षड्ज कहते हैं। अन्य छः स्वरोंकी उत्पत्तिका आधार होनेके कारण भी इसे षड्ज कहा जाता है।
इसका स्वभाव ठंडा, रंग गुलाबी और स्थान नाभि- प्रदेश है। इसका देवता अग्नि है। यह स्वर पित्तज रोगोंका शमन करता है। उदाहरण-मोरका स्वर षड्ज होता है।
Apr 30 • 7 tweets • 3 min read
हनुमान चालीसा के गूढ़ रहस्य
१. हनुमान चालीसा एक सिद्ध ग्रंथ है, जिसके साक्षी स्वयं भोलेनाथ है, कि जो हनुमान चालीसा पढ़ेगा उसको सिद्धि मिलेगी , वह सिद्धि मंगल कामना, शिक्षा, बल, बुद्धि जैसे कोई भी हो सकती है
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
२. हनुमान चालीसा में ३ दोहे ४० चौपाई लिखी है , हनुमान चालीसा तुलसीदास जी द्वारा अवधि भाषा में लिखा गया था
Apr 30 • 13 tweets • 4 min read
#thread राशियों के स्वामी-ग्रह
सूर्य तथा चन्द्रमा को एक-एक राशि का तथा मंगल बुध, गुरु, शुक्र तथा शनि को दो-दो राशियों का स्वामी माना गया है। विभिन्न ग्रहों का राशि-स्वामित्व निम्नानुसार होता है
१. मेष राशि का स्वामी मंगल है
२. वृष राशि का स्वामी शुक्र है
Apr 26 • 10 tweets • 4 min read
What do we learn from the 10 avatar of Bhagwan vishnu
1. Matsyavatara - Knowledge about universe revealed. It's theme is submerged Vedas are reclaimed 2. Koormavatara
Elecro magnetic energy, dev - Positive Energy, Asuras - Negative Energy, Birth of Galaxies, Nakshatras Grahas etc
Apr 24 • 9 tweets • 3 min read
🧵 बिना कुंडली देखे - जानिए ग्रहों की स्थिति #Thread
(कृपया थ्रेड को अंत पढ़े)
सूर्य - यदि आप सच बोलते हैं और अपनी बात से पीछे नहीं हटते तो आपका सूर्य अच्छा है।
चंद्र - यदि आपका मन स्थिर है, आपमें दूसरों के लिए प्रेम, करुणा, भावना है, तो आपका चंद्रमा अच्छा है।
Apr 22 • 10 tweets • 4 min read
1. #Thread आइए जानें 9 निधियां कौन-कौन सी हैं।🧵
आपने अष्ट सिद्धियों के बारे में बहुत पढ़ा बहुत जाना आज बात अच्छे से ननव निधियों के बारे होगी …
हनुमान चालीसा में लिखा हैं, “अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता असवर दीन जानकी माता”
हनुमान जी के पास अष्टसिद्धियां तथा नवनिधियां हैं जो प्रसन्न होने पर हनुमानजी अपने भक्तों को प्रदान करते हैं। नवनिधियों के बारे में शास्त्रों के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति को उनमें से एक भी प्राप्त हो जाती है, तो उसे जीवन भर कभी किसी चीज की कमी नहीं होती।2. 🔸ये हैं नौ निधियाँ
2.1 पद्म निधि पद्म निधि से संपन्न व्यक्ति में सात्विक गुण होते हैं, इसलिए उसके द्वारा अर्जित धन भी सात्विक होता है। सात्विक तरीके से अर्जित धन से कई पीढ़ियों को कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होती। ऐसे भक्त व्यक्ति सोने, चांदी और रत्नों से संपन्न होते हैं एवं उदारता से दान में विशेष रुचि रखते है
Apr 21 • 10 tweets • 3 min read
#Thread (कृपीया थ्रेड अंत तक पढ़े)
बीज मंत्र बहुत ही शक्तिशाली मंत्र होते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि किसी भी मंत्र की शक्ति उसके बीज मंत्र में समाहित होती है। इन मंत्रों से अशुभ ग्रहों को शुभ ग्रहों में परिवर्तित किया जा सकता है। ग्रहों की शांति के लिए ये बीज मंत्र अत्यंत ही लाभदायक होते हैं। ग्रहों के बीज मंत्र से जीवन में आने वाली सभी प्रकार की बुराइयों को दूर किया जा सकता है।1) सूर्य का बीज मंत्र
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः।
विधि - मंत्र को प्रात: काल में 108 बार जपें।
Apr 20 • 14 tweets • 8 min read
🧵 भारतीय वास्तुशास्त्र अनुसार घर में भूलकर भी न रखें ये 15 वस्तुएं
(कृपया अंत तक पढ़े)
1. देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियाँ या फटे हुए चित्र:
देवी-देवताओं की फटी और पुरानी तस्वीरें या टूटी हुई मूर्तियाँ(विग्रह )भी आर्थिक नुकसान का कारण बनती हैं, इसलिए उन्हें किसी पवित्र नदी में विसर्जित कर देना चाहिए।
इसके अलावा घर को सजाने के लिए देवी-देवताओं की तस्वीरों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। उनकी तस्वीरों या मूर्तियों की संख्या और स्थान निश्चित होता है। कुछ लोग बहुत सारी मूर्तियाँ इकट्ठा कर लेते हैं। एक ही देवी-देवता की 3 मूर्तियाँ और चित्र होते हैं, जो वास्तु दोष उत्पन्न करते हैं। इसके अलावा आजकल कुछ लोग ऐसे देवी-देवताओं की तस्वीरें लगाते हैं जो पारंपरिक नहीं हैं।2) टूटी हुई चीजें:
घर में टूटे हुए बर्तन, दर्पण, इलेक्ट्रॉनिक सामान, तस्वीरें, फर्नीचर, पलंग, घड़ी, दीपक, झाड़ू, मग, कप आदि नहीं रखना चाहिए। इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है और व्यक्ति को मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। ऐसा भी माना जाता है कि इससे न केवल वास्तु दोष उत्पन्न होता है बल्कि लक्ष्मी का आगमन भी रुक जाता है।
Apr 19 • 14 tweets • 7 min read
🧵 गरुड़ पुराण के अनुसार पापियों को उनके स्वभाव और पापों की गंभीरता के अनुसार यमधर्म द्वारा विभिन्न नरकों में भेजा जाता है, जिसमें से कुछ प्रमुख नर्क इस #Thread में वर्णित किए गये हैं! कृपया थ्रेड को अंत तक पढ़े !
1)रौरवम (सांपों की यातना)-
यह उन पापियों के लिए नरक है जो किसी दूसरे व्यक्ति की संपत्ति या संसाधनों को हड़प कर उसका उपभोग करते हैं। जब इन लोगों को इस नरक में डाला जाता है, तो जिन लोगों को उन्होंने धोखा दिया है वे एक भयानक सर्प "रुरु" का रूप ले लेते हैं। सांप उन्हें तब तक बुरी तरह से पीड़ा देते हैं जब तक उनका समय पूरा नहीं हो जाता।2) तामिसारा(भारी कोड़े मारना) -
जो लोग दूसरों का धन लूटते हैं, उन्हें यम के सेवक रस्सियों से बांधकर तामिसाराम नामक नरक में फेंक देते हैं। वहाँ उन्हें तब तक पीटा जाता है जब तक कि वे खून से लथपथ होकर बेहोश न हो जाएँ। जब वे होश में आते हैं तो उनकी पिटाई फिर से की जाती है। ऐसा तब तक किया जाता है जब तक कि उनका समय पूरा न हो जाए।
Apr 18 • 13 tweets • 13 min read
आपकी राशि के हिसाब आपकी प्रभावशाली बाते
Comment below what is ur zodiac sign
मेष राशि
स्वामी - मंगल
1. राशि चक्र की सबसे प्रथम राशि मेष है। जिसके स्वामी मंगल है। धातु संज्ञक यह राशि चर (चलित) स्वभाव की होती है।
2. मेष राशि वाले आकर्षक होते हैं। इनका स्वभाव कुछ रुखा हो सकता है। दिखने में सुंदर होते है। यह लोग किसी के दबाव में कार्य करना पसंद नहीं करते। इनका चरित्र साफ-सुथरा एवं आदर्शवादी होता है।
3. बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी होते हैं। समाज में इनका वर्चस्व होता है एवं मान सम्मान की प्राप्ति होती है।
4. निर्णय लेने में जल्दबाजी करते है तथा जिस कार्य को हाथ में लिया है उसको पूरा किए बिना पीछे नहीं हटते।
5. स्वभाव कभी-कभी विरक्ति का भी रहता है। लालच करना इस राशि के लोगों के स्वभाव मे नहीं होता। दूसरों की मदद करना अच्छा लगता है।
6. कल्पना शक्ति की प्रबलता रहती है। सोचते बहुत ज्यादा हैं।
7. जैसा खुद का स्वभाव है, वैसी ही अपेक्षा दूसरों से करते हैं।
8. अग्नितत्व होने के कारण क्रोध अतिशीघ्र आता है। किसी भी चुनौती स्वीकार करने की प्रवृत्ति होती है।
9. अपमान जल्दी भूलते नहीं, मन में दबा के रखते हैं। मौका पडने प्रतिशोध लेने से नहीं चूकते।
10. अपनी जिद पर अड़े रहना, यह भी मेष राशि के स्वभाव में पाया जाता आपके भीतर एक कलाकार छिपा होता है।
11. आप हर कार्य को करने में सक्षम हो सकते हैं। स्वयं को सर्वोपरि समझते
12. अपनी मर्जी के अनुसार ही दूसरों को चलाना चाहते हैं। इससे आप कई दुश्मन खड़े हो जाते हैं।
13. एक ही कार्य को बार-बार करना इस राशि के लोगों को पसंद नहीं होत
14. एक ही जगह ज्यादा दिनों तक रहना भी अच्छा नहीं लगता। नेतृत्व क्षमता अधिक होती है।
15. कम बोलना, हठी, अभिमानी, क्रोधी, प्रेम संबंधों से दुःखी, बुरे कर्मों से बचने वाले, नौकरों एवं महिलाओं से त्रस्त, कर्मठ, प्रतिभाशाली, यांत्रिक कार्यों में सफल होते हैं।
राशि वृष - राशि के लोगों की खास बातें
राशि स्वामी - शुक्र।
1 . इस राशि का चिह्न बैल है। बैल स्वभाव से ही अधिक पारिश्रमी और बहुत अधिक वीर्यवान होता है, साधारणतः वह शांत रहता है, किन्तु क्रोध आने पर वह उग्र रूप धारण कर लेता है।
2 बैल के समान स्वभाव वृष राशि के जातक में भी पाया जाता है। वृष राशि का स्वामी शुक्र ग्रह है।
3 इसके अन्तर्गत कृत्तिका नक्षत्र के तीन चरण, रोहिणी के चारों चरण और मृगशिरा के प्रथम दो चरण आते हैं।
4 इनके जीवन में पिता-पुत्र का कलह रहता है, जातक का मन सरकारी कार्यों की ओर रहता है। सरकारी ठेकेदारी का कार्य करवाने की योग्यता रहती है।
5 पिता के पास जमीनी काम या जमीन के द्वारा जीविकोपार्जन का साधन होता है। जातक अधिकतर तामसी भोजन में अपनी रुचि दिखाता है।
6 गुरु का प्रभाव जातक में ज्ञान के प्रति अहम भाव को पैदा करने वाला होता है, वह जब भी कोई बात करता है तो स्वाभिमान की बात करता है।
7 सरकारी क्षेत्रों की शिक्षा और उनके काम जातक को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
8 किसी प्रकार से केतु का बल मिल जाता है तो जातक सरकार का मुख्य सचेतक बनने की योग्यता रखता है। मंगल के प्रभाव से जातक के अंदर मानसिक गर्मी प्रदान करता है।
9 कल-कारखानों, स्वास्थ्य कार्यों और जनता के झगड़े सुलझाने का कार्य जातक कर सकता है, जातक की माता के जीवन में परेशानी ज्यादा होती है।
10 ये अधिक सौन्दर्य प्रेमी और कला प्रिय होते हैं। जातक कला के क्षेत्र में नाम करता है।
11 माता और पति का साथ या माता और पत्नी का साथ घरेलू वातावरण मे सामंजस्यता लाता है, जातक अपने जीवनसाथी के अधीन रहना पसंद करता है।
12 आपके जीवन में व्यापारिक यात्राएं काफी होती हैं, अपने ही बनाए हुए उसूलों पर जीवन चलाता है।
13 हमेशा दिमाग में कोई योजना बनती रहती है। कई बार अपने किए गए षडयंत्रों में खुद ही फंस भी जाते हैं।
Apr 15 • 10 tweets • 7 min read
🧵कौन सा रत्न किस राशि या ग्रह के लिए लाभदायक या किस परिस्थिति में हानिकारक है?
(कृपया #Thread अंत तक पढ़े)
प्राचीन ग्रंथों में 84 से अधिक प्रकार के रत्नों का उल्लेख किया गया है। इनमें से कई अब उपलब्ध नहीं हैं। मुख्य रूप से 9 रत्न ही अधिक प्रचलित हैं !
आइये समझते हैं कि इन 9 रत्नों का व्यक्ति के जीवन में क्या प्रभाव पड़ता हैं !
🔹 1. मूंगा (Coral) - मंगल की राशि मेष और वृश्चिक वाले लोगों को मूंगा पहनने की सलाह दी जाती है। मूंगा पहनने से साहस और आत्मविश्वास बढ़ता है। पुलिस, सेना, डॉक्टर, प्रॉपर्टी डीलर, हथियार निर्माता, सर्जन, कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर इंजीनियर आदि को मूंगा पहनने से विशेष लाभ मिलता है। रक्त संबंधी रोग, मिर्गी और पीलिया में भी इसे लाभकारी माना जाता है।
❗️कौन सी स्थिति में मूंगा पहनने से लाभ नहीं अपितु नुक़सान होगा :-
अगर कुंडली के अनुसार मूंगा नहीं पहना जाए तो यह नुकसान भी पहुंचा सकता है। इससे दुर्घटना भी हो सकती है। कहा जाता है कि इसका भार जीवनसाथी पर रहता है। इससे पारिवारिक विवाद, परिजनों से मनमुटाव और वाणी दोष भी हो सकता है। अगर कहीं भी शनि और मंगल की युति हो तो मूंगा नहीं पहनना चाहिए!
Apr 14 • 8 tweets • 3 min read
#Thread
वास्तु दिनचर्या सूर्य अनुसार
सूर्य की ऊर्जा के प्रभाव को भी वास्तु शास्त्र में महत्वपूर्ण माना जाता है, घर की सही दिशा, जिस तरफ सूर्य की किरणें प्रतिदिन प्रकाशित हों, यह वास्तु शास्त्र को प्रभावित करता है इसलिए जरूरी है कि सूर्य के अनुसार ही हम भवन निर्माण करें तथा अपनी दिनचर्या भी सूर्य के अनुसार ही निर्धारित करें। वास्तु शास्त्र में इसकी मान्यता है क्योंकि सूर्य की किरणें व्यक्ति को उनके घर और कार्यस्थल में समृद्धि, स्वास्थ्य, और शांति के लिए सहायक होती है।
1- सूर्योदय से पहले रात्रि 3 से सुबह 6 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त होता है। इस समय सूर्य घर के उत्तर-पूर्वी भाग में होता है। यह समय चिंतन-मनन व अध्ययन के लिए बेहतर होता है।2- सुबह 6 से 9 बजे तक सूर्य घर के पूर्वी हिस्से में रहता है इसीलिए घर ऐसा बनाएं कि सूर्य की पर्याप्त रौशनी घर में आ सके और उस स्थल पर सूर्योदय की प्रथम किरण आपके मुखाग्र पर पड़े।
Apr 11 • 12 tweets • 3 min read
🧵 बारह राशियों के अभ्युदय मंत्र #Thread
अपनी राशि के मंत्र जप करने से धन, यश, लाभ, कीर्ति, आरोग्य,एवं मन सदा प्रसन्न रहता है। कम से कम दस बार प्रतिदिन जाप करना चाहिए।।
जप मंत्र
१. मेष - ॐ ह्रीं श्री लक्ष्मीनारायणाय नमः ।
२. वृष - ॐ गोपालाय उत्तर ध्वजाय नमः ।
Apr 1 • 5 tweets • 3 min read
Do you Know Practices of kriya yogis ?
1. The Forms of Pranayama 2. Cleaning the Nadis 3. Mental cleaning of nadis
#thread
The Forms of Pranayama
Yogis practice the following forms of pranayama.
1. Bhastrika: quick inhalation and exhalation through both the nostrils, which is said to clear the nasal passage and the subtle channels.
2. Surya bhedana (conquest of the sun): quick inhalation through the right nostril, then retention and exhalation through the left nostril, which is used to calm the mind.
3. Ujjayi (upward restraint): inhalation through both the nostrils and exhalation through the left nostril, which helps to clear all diseases caused by too much phlegm and to strengthen the heart muscles.
4. Shitali (cooling): inhalation through the mouth while cup- ping the tongue and exhalation through both the nostrils, which is said to prolong youth and help digestion.
5. Plavini (swimming): long retention after slow inhalation.
6. Kevala kumbhaka (simple retention): just retention of breath without any special inhalation or exhalation.
7. Bhramari (bee-like): humming during any inhalation is said to clear the throat and the vocal cords.
Mar 31 • 13 tweets • 7 min read
विविध कामनाओं की पूर्ति के लिये विभिन्न पदार्थों के शिवलिंग निर्माण कर उनकी पूजा
#thread
१. गन्ध लिंग
दो भाग कस्तूरी, चार भाग चन्दन तथा तीन भाग कुंकुम को मिला कर जो शिवलिंग बनाया जाता है उसे "गन्ध लिंग" कहा गया है। इस प्रकार के शिवलिंग की पूजा से व्यक्ति स्वयं शिवमय हो जाता है।
२. पुष्प लिंग
विविध प्रकार के सुगन्धित पुष्पों को मिला कर शिवलिंग बनाया जाता है, उसे "पुष्प-लिंग" कहते है, इसमें केतकी के पुष्पों को शामिल नहीं करना चाहिये, इस प्रकार के शिवलिंग का पूजन भूमिपति जा अथवा चुनाव में सफलता प्राप्त करने के लिये किया जाता है ।
३. रजोमय लिंग
यह मिट्टी या बालुका द्वारा बनाया जाता है, । विद्या प्राप्ति और धन सम्पदा प्राप्ति के लिये इस प्रकार के लिंग की पूजा का प्रावधान है।
४. यव, गो, धूम शास्तिज - लिंग
जौ, गेहूं तथा चावल तीनों का आटा समान भाग ले कर शिवलिंग का निर्माण किया जाता है और उसका विधि-विधान के साथ पूजन किया जाता है। इस प्रकार की पूजा लक्ष्मी, स्वास्थ्य और संतान प्राप्ति के लिये की जाती है।
Mar 25 • 13 tweets • 18 min read
त्राटक, त्राटक और कुंडलिनी चक्र, त्राटक और सिद्धि ?
त्राटक का अर्थ - जब साधक किसी वस्तु पर अपनी दृष्टि और मन को बाँधता है, तो वह क्रिया त्र्याटक कहलाती है, त्र्याटक शब्द ही आगे चलकर त्राटक कहा जाता है। किसी पदार्थ को बिना पलक झपकाए टकटकी लगाकर देखते रहना। जब मनुष्य सामान्य अवस्था में संसार में व्यवहार करता है, तब उसकी दृष्टि किसी भी पदार्थ पर मात्र कुछ क्षण ही लगातार पड़ती है, फिर उसकी दृष्टि के सामने दूसरा पदार्थ आ जाता है अर्थात् दूसरा दृश्य देखने लगता है तथा पदार्थ को देखते समय उसकी पलकें रुक कर झपकती रहती है, इसे द्वाटक कहते हैं। जब मनुष्य जाग्रत अवस्था में व्यवहार की दशा में किसी पदार्थ को बिना पलक झपकाए लगातार देखता रहता है, उसे एकटक कहते है।
योग मार्ग में त्राटक का महत्त्व बहुत अधिक है। योग के अभ्यास में मन को संयमित करके अंतर्मुखी करना अति आवश्यक है। जब तक मन एक जगह ठहर कर अंतर्मुखी नहीं होगा, तब तक धारणा, ध्यान और समाधि का अभ्यास नहीं किया जा सकता है। मन एक जगह ठहरता ही नहीं है क्योंकि रजोगुण प्रधान होने के कारण उसके अन्दर चंचलता रहती है, चंचल होने के कारण मन सदैव एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ की ओर भागता रहता है। उसे अगर आप एक जगह पर ठहराना चाहें, तो वह नहीं ठहरेगा। आप मन को एक जगह ठहरा दें या रोक दें, फिर उससे कहो तुम इसी स्थान पर कुछ क्षणों तक ठहरे रहो भागना नहीं। आपको पता ही नहीं चलेगा कि मन कब भाग गया। कुछ समय बाद आपको पता चलेगा कि मन को तो मैंने अमुक जगह पर ठहरने के लिए कहा था, मगर पता नहीं, कब वह बाजार की ओर, कार्यालय की ओर, मित्रों की ओर, रिश्तेदारों की ओर भाग गया। इसी भागते हुए मन को एक जगह ठहराने के लिए त्राटक का अभ्यास किया जाता है।
क्यूँ करे त्राटक ?
त्राटक के अभ्यास के द्वारा जब मन को एक जगह ठहराने का अभ्यास करते है, तब धीरे-धीरे कठोर अभ्यास के द्वारा मन ठहरने लगता है, तथा अभ्यास के द्वारा मन की रजोगुण व तमोगुण की मात्रा घटने लगती है। रजोगुण की मात्रा कम होने से उसकी चंचलता कम होने लगती है तथा तमोगुण की मात्रा कम होने से सत्वगुण का प्रभाव बढ़ने लगता है। आलस्य व नकारात्मक सोच में परिवर्तन आने लगता है। अभ्यासी की सोच बदलने लगती है। मन के अन्दर शुद्धता व व्यापकता आने लगती है। इससे मन सशक्त बनता है, मन के सशक्त व बलवान होने से अभ्यासी के अन्दर निर्भीकता या निडरता वाली सोच आने लगती है।
जब तक मनुष्य त्राटक का अभ्यास नहीं करता है, तब तक उसका मन कमजोर स्वभाव वाला रहता है, उसकी संकल्प शक्ति में किसी प्रकार का बल नहीं रहता है। ऐसा मनुष्य संकल्प शक्ति द्वारा किसी भी प्रकार का कार्य नहीं कर सकता है। त्राटक का अभ्यास करने वाले मनुष्य की संकल्प शक्ति अभ्यासानुसार शक्तिशाली हो जाती है। ऐसी अवस्था में साधक संकल्प के द्वारा ढेरों कार्य कर सकता है, त्राटक शक्ति द्वारा आध्यात्मिक, सूक्ष्म रूप से, स्थूल रूप से ढेरों कार्य कर सकता है। अभ्यासी के अन्दर ऐसी विलक्षणता आ जाती है कि उसके द्वारा किये गये कार्यों को देखकर संसारी मनुष्य आश्चर्यचकित हो जाते है। इसलिए त्राटक के द्वारा आजकल ढेरों प्रकार के कार्य किये जाते हैं। इस प्रकार के कार्यों को करने के लिये किसी प्रकार का धन का खर्च नहीं होता है।